शायरी मज़हर-ए-अहवाल-ए-दरूं है यूँ है एक इक शेर बता देता है यूँ है यूँ है इक तिरी याद ही देती है मिरे दिल को क़रार इक तिरा नाम ही अब वजह-ए-सुकूँ है यूँ है ख़ुश्क सहरा भी नज़र आता है गुलज़ार-ए-इरम हमरही का ये तिरी सारा फ़ुसूँ है यूँ है इश्क़ हर इक से ग़ुलामी की अदा माँगता है उस के दरबार में जो सर है निगूँ है यूँ है ख़ाक छानेंगे चलो हम भी बयाबानों की जब यही शेवा-ए-अर्बाब-ए-जुनूँ है यूँ है हाल-ए-दिल सुन के मिरा चुप न रहो कुछ तो कहो ख़ामुशी नेमत-ए-गोयाई का ख़ूँ है यूँ है जब भी महफ़िल में ग़ज़ल अपनी सुनाता है 'ख़ुमार' तब्सिरे होते हैं हर शेर पे यूँ है यूँ है