शेर दौलत है कहाँ की दौलत मैं ग़नी हूँ तो ज़बाँ की दौलत सैकड़ों हो गए साहिब-दीवाँ मेरी तक़रीरी ओ बयाँ की दौलत सैर-ए-महताब कर आए हम भी बारे इस आब-ए-रवाँ की दौलत ज़ख़्म क्या क्या मिरे तन पर आए तेरी शमशीर ओ सिनाँ की दौलत हुई महबूस-ए-क़फ़स बुलबुल ने रंज देखा ये ख़िज़ाँ की दौलत कोई नव्वाब के घर का है ग़ुलाम कोई पलताए है ख़ाँ की दौलत 'मुसहफ़ी' पर है तिरा कर्र-ओ-फ़र्र साहिब-ए-आलमियाँ की दौलत