शेर तो सब कहते हैं क्या है चुप रहने में और मज़ा है क्या पाया दीवान छपा कर लो रद्दी के मोल बिका है दरवाज़े पर पहरा देने तन्हाई का भूत खड़ा है घर में क्या आया कि मुझ को दीवारों ने घेर लिया है मैं नाहक़ दिन काट रहा हूँ कौन यहाँ सौ साल जिया है आगे पीछे कोई नहीं है कोई नहीं तो फिर ये क्या है बाहर देख चुकूँ तो देखूँ अंदर क्या होने वाला है एक ग़ज़ल और कह लो 'अल्वी' फिर बरसों तक चुप रहना है