शिद्दत बहार की भी गवारा नहीं मुझे फूलों के तोड़ने का भी यारा नहीं मुझे मौजों से खेलता हूँ इरादों का दौर है मौजों में आरज़ू-ए-किनारा नहीं मुझे मैं गिर पड़ा था राह में चलते हुए मगर फिर भी तो दोस्तों ने पुकारा नहीं मुझे किस दिन चुभी नहीं हैं मसाइब की किर्चियाँ किस दिन तुम्हारे ग़म ने सँवारा नहीं मुझे रहता हूँ आरज़ूओं के छोटे से शहर में ख़ुश हूँ कि आरज़ू-ए-बुख़ारा नहीं मुझे तुम मेरी जाँ हो जाँ का भरोसा मगर नहीं या'नी कि ए'तिबार तुम्हारा नहीं मुझे