शिद्दत-ए-ग़म से आह कर बैठे अज़मत-ए-ग़म तबाह कर बैठे चार उन से निगाह कर बैठे कितना रंगीं गुनाह कर बैठे उन की जानिब निगाह कर बैठे सारी महफ़िल गवाह कर बैठे उन की दिल-जूई हर तरह से की ग़ैर से रस्म-ओ-राह कर बैठे दर्द-ए-दिल तोहफ़ा-ए-मोहब्बत था दर्द-ए-दिल से निबाह कर बैठे गुल से आरिज़ पे शबनमी क़तरे क्यों उन्हें इंतिबाह कर बैठे पारसाई की छाँव में 'मजरूह' कैसे कैसे गुनाह कर बैठे