इश्क़ को पहना रहा हूँ आह-ओ-ज़ारी का लिबास ता कि हो मुझ को मयस्सर फ़ज़्ल-ए-बारी का लिबास कब हमारे वास्ते लौटेंगी ख़ुशियाँ ज़िंदगी कब उतारेगा ज़माना सोगवारी का लिबास राज़ में फिर भी हमारा इश्क़ रह सकता नहीं ज़ेब-तन हम लाख कर लें पर्दा-दारी का लिबास मेरे पीछे पड़ गए हैं सैकड़ों बुत ऐ ख़ुदा कर अता ईमाँ को मेरे पाएदारी का लिबास दर-हक़ीक़त छोड़ बैठे हैं सभी अब ये चलन इक दिखावा है वफ़ा की पासदारी का लिबास जान कर बाज़ी लगाना जान पर आने लगा बस नुमाइश के लिए है अब तो यारी का लिबास लोग अपनी अज़्मतों के गा रहे हैं गुन 'ख़लिश' और मैं पहने हुए हूँ इंकिसारी का लिबास