शिद्दत-ए-इंतिज़ार काम आई By Ghazal << यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का ... ख़ाना-ए-उम्मीद बे-नूर-ओ-ज़... >> शिद्दत-ए-इंतिज़ार काम आई उन की तहरीर मेरे नाम आई दिन में हम ने भुला दिया था तुझे रात लेने को इंतिक़ाम आई सुब्ह मरकज़ बनी उमीदों का शाम मायूसियों के काम आई देखते देखते तिरा चेहरा ख़ुद-ब-ख़ुद क़ुदरत-कलाम आई Share on: