यक-ब-यक मंज़र-ए-हस्ती का नया हो जाना धूप में सुरमई मिट्टी का हरा हो जाना सुब्ह के शहर में इक शोर है शादाबी का गिल-ए-दीवार, ज़रा बोसा-नुमा हो जाना कोई इक़्लीम नहीं मेरे तसर्रुफ़ में मगर मुझ को आता है बहुत फ़रमाँ-रवा हो जाना ज़िश्त और ख़ूब के मा-बैन जलाया मैं ने जिस गुल-ए-सुर्ख़ को था शोला-नुमा हो जाना चश्म का आईना-ख़ाने में पहुँचना 'सरवत' दिल-ए-दरवेश का माइल-ब-दुआ हो जाना