शिद्दत-ए-कर्ब से कराह उठा जब उठा दर्द-ए-बे-पनाह उठा मेरे आगे चला न ज़ोर-ए-तिलिस्म मेरे पीछे ग़ुबार-ए-राह उठा बे-सबब रात भर चराग़ जले मैं धुआँ बन के ख़्वाह-मख़ाह उठा दिल बग़ावत पे कब था आमादा सर था जो पेश-ए-बादशाह उठा छोड़ दे आज शर्म का दामन ऐ परी-ज़ाद अब निगाह उठा मुझ से क़ाएम थी बज़्म की रौनक़ मैं उठा फ़र्श-ए-ख़ानक़ाह उठा ऐ जहाँगीर अपना अदल तो देख कोई भर कर यहाँ से आह उठा