शिकस्ता-पाई से बच कर मिरी निकल भी गया जो राहबर था मिरा रास्ता बदल भी गया करूँगा क्या जो हुई फिर भी आतिशीं बारिश जो साएबाँ था मिरे सर पे वो तो जल भी गया हवा शदीद है इतनी ये झोंपड़े ही नहीं अमीर-ए-शहर तिरा ख़ुशनुमा महल भी गया कमान खींचने वाला हदफ़ शनास न था शिकार ज़द में नहीं था कि तीर चल भी गया मैं सोचता ही रहा रास्ते हैं पेचीदा जो मेरे साथ चला था कहीं निकल भी गया जो तैरना ही नहीं जानता वो डूबेगा ज़रा सी देर को क्या है अगर सँभल भी गया बड़ा ही बिफरा हुआ दस्त-ए-शाह है 'आसिम' बचाओ रूह वो जिस्मों को तो कुचल भी गया