शिकायत-ए-ग़म-ए-हिज्राँ इस एहतिमाम के साथ कि दिल ख़मोश हुआ है किसी के नाम से साथ क़ुसूर था लब-ओ-लहजा का वर्ना ऐ साक़ी कहाँ था मय का तक़ाज़ा मिरे सलाम के साथ मसर्रतों ने जो छेड़ा तो आँख भर आई हँसी भी आई मुझे ग़म के एहतिराम के साथ ज़रूर गर्दिश-ए-दौराँ की साँस रुक जाती तुम्हारा रक़्स भी होता जो रक़्स-ए-जाम के साथ उसी का हम-सफ़र-ए-शौक़ कर दिया मुझ को ज़माना चल न सका जिस सुबुक-ख़िराम के साथ नज़ारा यूँ हो कि नज़रों की तिश्नगी न बुझे ये शर्त-ए-ख़ास भी रख दी है इज़्न-ए-आम के साथ है ख़ुद ही एक मुकम्मल फ़साना ऐ 'जौहर' किसी का नाम मिरे ज़िक्र-ए-ना-तमाम के साथ