तलब-नवाज़ इशारे हज़ार मिलते हैं जो हो नज़र तो नज़ारे हज़ार मिलते हैं जवाँ हो अज़्म-ए-सफ़र तो अँधेरी रातों में चराग़-ए-राह सितारे हज़ार मिलते हैं बढ़े सफ़ीना मिला कर जो आँख तूफ़ाँ से तो मौज-ए-ग़म में किनारे हज़ार मिलते हैं जुनूँ को गेसू-ए-बरहम के साए की है तलाश वगर्ना ज़ुल्फ़ सँवारे हज़ार मिलते हैं नियाज़-मंद हो शायान-ए-चश्म-ए-नाज़ कोई निगाह-ए-नाज़ के मारे हज़ार मिलते हैं अगर ख़ुलूस-ए-सफ़र हो तो ठोकरों से भी मुसाफ़िरों को सहारे हज़ार मिलते हैं कोई कली भी शरीक-ए-ख़िज़ाँ नहीं 'जौहर' चमन के राज-दुलारे हज़ार मिलते हैं