शिकवा नहीं गिला नहीं रब्त कोई बहम नहीं रस्म-ए-सलाम क्या जहाँ पुर्सिश-ए-हाल-ए-ग़म नहीं गो कि नहीं निगाह में दिल से नहीं हो दूर तुम दीदा-ए-दिल के वास्ते फ़ासला बेश-ओ-कम नहीं बज़्म से आप क्या गए रौनक़-ए-बज़्म ले गए अब वो सुरूर-ए-दिल कहाँ आप गए तो हम नहीं आप की याद आ गई दिल पे ख़ुशी सी छा गई अब मुझे ग़म से वास्ता अब मुझे कोई ग़म नहीं पहला सा वो करम कहाँ लुत्फ़ की वो नज़र कहाँ है ये सितम की इंतिहा कोई नया सितम नहीं उस की निगाह-ए-मस्त का अब भी ख़ुमार है मगर साक़ी-ए-दिल-नवाज़ का पहला सा वो करम नहीं दामन इधर है तार तार रुख़ पे नहीं उधर नक़ाब इश्क़ अगर है बे-वक़ार हुस्न का भी भरम नहीं मंज़िल-ए-ज़िंदगी न पूछ सिर्फ़ सफ़र है ज़िंदगी पाँव उठा क़दम बढ़ा होश सँभाल थम नहीं देख कर उन के इल्तिफ़ात रह गई दिल की दिल में बात होश गया जो वो गए आए तो दम में दम नहीं मिन्नतें शैख़-ओ-बरहमन कीजिए किस लिए 'हबीब' दिल है मिरी निगाह में दैर नहीं हरम नहीं