शीशा-ए-दिल को फ़ज़ा में न उछालो यारो टूट कर इस को बिखरने से बचा लो यारो जिस्म के ज़ख़्म तो भर जाएँगे वक़्त आने पर रूह ज़ख़्मी है इलाज इस का निकालो यारो कू-ए-क़ातिल में बुलावा है ब-सद-शान चलो आज ज़ख़्मों से बदन अपना सजा लो यारो ज़ीस्त की तल्ख़-नवाई है मिरे शे'रों में बे-तुकी कह के मिरी बात न टालो यारो कुल्फ़त-ए-ज़ीस्त से मिल जाएगी फ़ुर्सत तुम को मेरे अशआ'र को होंटों से लगा लो यारो