शो'ला-ए-ग़म के सिवा दाख़िल नहीं प्यार के क़ाबिल हमारा दिल नहीं तेरी सूरत को भुलाएँ किस तरह तू नहीं तो रौनक़-ए-महफ़िल नहीं मस्नद-तामीर फिर उन को न दो ख़ाक-ए-गुलशन के भी जो क़ाबिल नहीं आग पानी फूल पत्थर रंग-ओ-नूर हुस्न की फ़ितरत में क्या शामिल नहीं ख़त्म होता है जहाँ ये रास्ता वो भी है इक रास्ता मंज़िल नहीं दिल है वो सह ले हज़ारों कुल्फ़तें जो करे शिकवा वो समझो दिल नहीं नाख़ुदा ले चल मुझे मंजधार में मुझ को तूफ़ाँ चाहिए साहिल नहीं अज़्म पुख़्ता हो अगर ऐ 'सरफ़राज़' कोह-ए-ग़म को काटना मुश्किल नहीं