मोहतरम नेक दिल ख़ुश ख़िसाल आदमी अब नज़र आते हैं ख़ाल-ख़ाल आदमी है यही दौर-ए-क़हत-उर-रिजाल आदमी कब दिखाएँगे अपना कमाल आदमी जा ब जा ज़ालिमों का तसल्लुत है क्यों आदमी का है तुझ से सवाल आदमी शाद-ओ-आबाद रहने से क़ासिर हैं ये क्यों तबाही के बुनते हैं जाल आदमी खोई इंसानियत से हैं महरूम अब रोज़ करते हैं जंग-ओ-जिदाल आदमी नफ़्स-ए-अम्मारा ने ऐसा बे-हिस किया आदमी की न बन पाए ढाल आदमी ये सिफ़त में तग़य्युर के अस्बाब हैं खा रहे हैं हराम-ओ-हलाल आदमी दिल का आईना अब इन का चेहरा नहीं आप अपने हैं अब यर्ग़माल आदमी था सरोकार सिद्क़-ओ-सफ़ा से इन्हें आज करते हैं बस क़ील-ओ-क़ाल आदमी ये मिरे अह्द-ए-बद-बख़्त की बात है आदमी की ही खींचे है खाल आदमी क़ब्र में भी तो ग़ारत-गर-ए-अम्न हैं कर के जाए कहाँ इंतिक़ाल आदमी शे'र भी 'सरफ़राज़' उस के हैं मुनफ़रिद शान ये है कि है बे-मिसाल आदमी