शोहरत है मेरी सुख़न-वरी की हिन्दी में है तर्ज़ फ़ारसी की क्यूँ ज़िक्र-ए-विसाल से ख़फ़ा हो ये बात तो है हँसी-ख़ुशी की अल्लाह रे नज़ाकत-ए-लब-ए-यार बुत-ख़ाने पड़े जो मय-कशी की शिकवा न करूँ मैं ता-लब-ए-गोर दुश्मन भी कहे कि दोस्ती की हो दीदा-ए-मेहर शबनम-अफ़्शाँ हालत जो दिखाऊँ बे-कसी की जब मौत किसी तरह न आए घबरा कर हम ने आशिक़ी की ख़ामोश हो शम्अ रोते रोते तक़रीर करूँ जो ख़ामुशी की ऐ मौत अज़ाब से छुड़ाया इस क़ैद से तू ने मुख़्लिसी की बुलबुल को किया असीर-ए-गुल-दाम सय्याद ने ख़ूब मुंसिफ़ी की देखा जो वो रश्क-ए-माह-ए-कनआँ रंगत हुई ज़र-दस्तरी की पहुँचे न ब-रंग-ए-शाना ता ज़ुल्फ़ क्या बख़्त-ए-सियह ने कोताही की दोज़ख़ की तरह जलें न ज़ाहिद जन्नत में भी हम ने मय-कशी की नाले किए चुपके चुपके रोए क्या क्या ग़म यार की ख़ुशी की ग़ूलों ने लहद पे हूँ वो वहशी आँखों से आ के रौशनी की ऐ 'अर्श' ख़ुदा-ओ-बुत अहद हैं मुशरिक को समाई है दुई की