तुम्हारे जिस्म को छू कर महक उट्ठी सबा कोई

तुम्हारे जिस्म को छू कर महक उट्ठी सबा कोई
चला ख़ुश्बू से ख़ुश्बू का बराबर सिलसिला कोई

बहुत मायूस लौटी है चमन से फिर हवा कोई
ग़ज़ल के कहने वाले कह रहे हैं मर्सिया कोई

ख़िज़ाँ के दौर में गुलशन को क्या महसूस होता है
ये नाज़ुक बात समझेगा भी कैसे बेवफ़ा कोई

ये हम जानें हमारी नाव जाने या भँवर जाने
हमारी कश्मकश में अब न आए ना-ख़ुदा कोई

हमीं ने जान दी जिस बाँकपन से जिस क़रीने से
ये हसरत रह गई मक़्तल में आ कर देखता कोई

सुन ऐ पतझड़ ज़माना लग गया तेरी हुकूमत का
गुलों को अब नहीं मंज़ूर तेरा फ़ैसला कोई

न जाने क्यूँ धुएँ की इक लकीर उठती है इस घर से
कहीं मलबे के नीचे दब गया जलता दिया कोई

अभी तक इस ज़मीं के आधे सर में दर्द बाक़ी है
अरे चारागरो छोड़ो दुआ कर लो दवा कोई

तुम्हारी जुस्तुजू में छोड़ दी थी हम ने जन्नत भी
वगर्ना इस ज़मीं पर कैसे होता हादिसा कोई

इरादों में ज़रा बिजली जगा के देख ऐ 'पंछी'
इसी पिंजरे से निकलेगा चमन का रास्ता कोई


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