शोर हुआ क्या अब के आतिश-नाक हुआ जलते जलते सब कुछ जल कर ख़ाक हुआ सब को अपनी अपनी पड़ी थी पूछते क्या कौन वहाँ बच निकला कौन हलाक हुआ किन रंगों उस सूरत की ता'बीर करूँ ख़्वाब-नदी में इक शो'ला पैराक हुआ नादाँ को आईना ही अय्यार करे ख़ुद-बीं हो कर कैसा वो चालाक हुआ तारीकी के रात अज़ाब ही क्या कम थे सुब्ह हुए पर सूरज भी सफ़्फ़ाक हुआ ऐसी कोई बात नहीं थी लेकिन रात वो भी रोया मैं भी गिर्या-नाक हुआ