शिकवा करते हैं जो इक बार कहीं मिलते हैं एक ही शहर में क्यों रह के नहीं मिलते हैं हम ने इक उम्र उठाई है अज़िय्यत क्या क्या फिर ख़ुदा ख़ैर करे वहम-ओ-यक़ीं मिलते हैं नहीं मिलते तो ख़ज़फ़ भी नहीं मिलते हम को और मिलते हैं तो क्या दुर्र-ए-समीं मिलते हैं ऐसे मिलने से तो बेहतर है मिले दिल को नजात जहाँ मिलना नहीं होता वो वहीं मिलते हैं