शोर इतना है कि तन्हाई हो महफ़िल जैसे किसी तूफ़ान की ज़द में कोई साहिल जैसे उसे देखा तो ख़यालों में जो मंज़िल थी गई वो ही था मेरी तमन्नाओं का हासिल जैसे मैं तो समझा था कि हम दोनों का जज़्बात है नाम आज लगते हो मगर तुम किसी आक़िल जैसे हमा-तन गोश हूँ आवाज़ पे उस की ऐसे मेरे सीने में धड़कता हो तिरा दिल जैसे पहली मंज़िल पे ही क़ुर्बान हुआ यूँ 'आरिफ़' तय हुए मंज़िल इरफ़ाँ के मराहिल जैसे