सोची थी जो वो जुर्म-ओ-सज़ा तक पहुँच गई जो बात दिल में थी वो ख़ुदा तक पहुँच गई पत्ता गिरा कि सर पे कोई संग आ लगा चुप-चाप उस की याद सदा तक पहुँच गई उस गुल पे फूल फूल ने दिल में किया है रश्क जब शब की बात बाद-ए-सबा तक पहुँच गई मैं महव-ए-ख़्वाब था कि मिरे मन की एक मौज उट्ठी तो उस के बंद-ए-क़बा तक पहुँच गई मैं बात कर रहा था ज़माने के जौर की आगे बढ़ी तो उस की अदा तक पहुँच गई इक आरज़ू कि दिल में रही है तमाम-उम्र तंग आ के आज दस्त-ए-दुआ' तक पहुँच गई