शोर सारा मिरा समो लेगी ख़ामुशी एक रोज़ बोलेगी इक उदासी भी जाँ की दुश्मन है बाल वहशत भी अपने खोलेगी वस्ल की याद के सहारे ही हिज्र मेरा अकेले रो लेगी तेरे दिल ने मुझे पुकारा है क्या तू उस से भी झूट बोलेगी मेरी क़िस्मत में नींद है ही नहीं तेरा क्या है तू दिन में सो लेगी मैं दोबारा तुझे मिलूँगा नहीं लाख तू दिल अगर टटोलेगी