सुन मिरी दास्तान हैरत में है ज़मीन आसमान हैरत में इक तहय्युर है चार सू मेरे रोक दी है उड़ान हैरत में आग है फैलती ही जाती है हैं मकीन और मकान हैरत में ऐन मंज़िल पे ला के छोड़ दिया अब तलक हूँ मैं जान हैरत में या'नी महफ़ूज़ हूँ ख़ुदा शाहिद तीर शश्दर कमान हैरत में अब वफ़ा की खपत नहीं कोई बंद कर दी दुकान हैरत में शोर करती है आँख पागल सी देखती है ज़बान हैरत में