शोर से बच कर सहमा सहमा बैठा है चुप-चाप हंगामों का बानी देखो कैसा है चुप-चाप अपने मन के पागल-पन को और कहाँ ले जाएँ दूर दूर तक रेत का सहरा लेटा है चुप-चाप अंग अंग में लम्स की ख़ुशबू पेंगें लेती है अंग अंग में जैसे कोई बैठा है चुप-चाप रिश्तों की दीवारें ढा कर मेरे जैसा शख़्स दिन के ज़र्द पहाड़ के पीछे उतरा है चुप-चाप लोग न जाने कैसी कैसी बातें करते हैं मेरे पास तो मेरा साया लेटा है चुप-चाप