शोर-ए-महशर उठा हर सम्त से मय-ख़ाने में जाने क्या डाल दिया साक़ी ने पैमाने में महफ़िल-ए-हुस्न में शौक़-ए-दिल-ए-ज़ाहिद मत पूछ घोल कर तौबा को पी जाते हैं पैमाने में मिल गया मुझ को परी-ख़ाना-ए-दिल में आख़िर जिस को ढूँडा था बहुत का'बे में बुत-ख़ाने में उठ गए रिंद-ए-बला-नोश सनम-ख़ाने से ख़ाक उड़ती सी नज़र आती है मय-ख़ाने में कारवाँ मंज़िल-ए-मक़्सूद पे पहुँचा 'नय्यर' मैं कि फिरता हूँ अभी दश्त में वीराने में