हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है रंग इस का कई रंगों में बहुत बोलता है मैं उसे चुप के हवाले से भी कैसे लिक्खूँ वो तो ऐसा है कि हर्फ़ों में बहुत बोलता है एक लौ है कि सर-ए-बाम थिरकती है बहुत इक दिया है कि दरीचों में बहुत बोलता है अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को एक सन्नाटा कि गलियों में बहुत बोलता है एक ही लै से है मानूस मिरा तार-ए-नफ़स एक ही सर मेरे कानों में बहुत बोलता है चाट लेती है मिरा जिस्म मिरे पेड़ की धूप मेरा साया बुरे वक़्तों में बहुत बोलता है अक्सर औक़ात मिरी ज़ात का इक ख़ाली-पन मेरी टूटी हुई चीज़ों में बहुत बोलता है दिल मिरा उस की तरह फूल के मानिंद है 'क़ैस' जो मिरी बंद किताबों में बहुत बोलता है