शोरिश-ए-हर्फ़ है अयाग़ में कुछ लिख क़लम मंज़िल-ए-बलाग़ में कुछ देखे जाता है वो क़दम के निशाँ मिल गया है उसे सुराग़ में कुछ आफ़्ताब और ये सियह-ख़ाना तू ने देखा है दिल के दाग़ में कुछ सारी दुनिया को मार दी ठोकर आ गया था मिरे दिमाग़ में कुछ ज़िक्र-ए-बाग़-ए-नईम है वल्लाह लुत्फ़ आने लगा फ़राग़ में कुछ बुझ रहा है उफ़ुक़ पे अब सूरज आप रख दीजिए चराग़ में कुछ ऐ 'क़मर' आँख से उतर दिल में ज़ौ-फ़िशानी हो दिल के बाग़ में कुछ