समंद-ए-शौक़ पे ख़त उस का ताज़ियाना हुआ मिले हुए भी तो उस से हमें ज़माना हुआ ये सोचता हूँ कि आख़िर वो मस्लहत क्या थी कि जिस से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का इक बहाना हुआ अब आ भी जाओ कि इक दूसरे में गुम हो जाएँ विसाल-ओ-हिज्र का क़िस्सा बहुत पुराना हुआ वो जिस से मिलने की दिल में तड़प ज़ियादा है हमारा उस से तआ'रुफ़ भी ग़ाएबाना हुआ सदाक़तों पे यक़ीं कोई किस तरह कर ले कि कल जो सच था वही आज इक फ़साना हुआ वो तेरी बज़्म से बाज़ार हो कि गुलशन हो कहाँ कहाँ न मिरा दिल तिरा निशाना हुआ वो आज आए हैं 'नादिर' तो ऐसा लगता है फ़लक पे जैसे हमारा ग़रीब-ख़ाना हुआ