शुआ'-ए-सम्त-ए-सफ़र को नज़र में रखना है तलातुम और भँवर को नज़र में रखना है हैं राह में ख़स-ओ-ख़ाशाक के पहाड़ तो क्या तिलिस्म-ए-बर्क़ को अपने हुनर में रखना है शिआ'र-ए-चोब-ए-क़लम शेवा-ए-असा-ए-कलीम शुआ'-ए-तूर को तार-ए-नज़र में रखना है नए तबूक ने अन-गिन महाज़ खोले हैं अभी गुनाह-ए-क़दम अपने घर में रखना है शबों के पास रहे ग़ार-ए-सौर का तिरयाक हिरा का नूर नुमूद-ए-सहर में रखना है फिर उस अदा से खुलें ज़ेहन-ओ-दिल के दरवाज़े उसी नसीम-ए-उख़ुव्वत को सर में रखना है डुबो रही है तही सीपियों की नादानी सदी के जाल को पल पल नज़र में रखना है कभी है धूप कभी फ़िक्र चाँदनी है 'मतीन' तजल्ली-ज़ार-ए-ग़ज़ल को सफ़र में रखना है