शुक्र आख़िर अज़ाब से निकला वक़्त अहद-ए-शबाब से निकला उस के हम यूँ बयान से निकले जैसे काँटा गुलाब से निकला उम्र यक-दम चली गई पीछे ख़त अचानक किताब से निकला जान तारों ने टूट कर दे दी गीत ऐसा रबाब से निकला मरने वाले तुझे मुबारक तू ज़िंदगी के सराब से निकला ढेर सारे गिले निकल आए दिल न ख़ाना-ख़राब से निकला वो तो 'मसऊद' ख़ुद सवाली था राज़ उस के जवाब से निकला