न मुँह में इक निवाला जा रहा है फ़क़त धोके में डाला जा रहा है निकाला जा चुका हूँ दह्र से जब तो क्यों दिल से निकाला जा रहा है ये काफ़िर बस तुम्हें पाने की ख़ातिर बहाने से शिवाला जा रहा है तेरी यादें संजोता हूँ मैं ऐसे कि जैसे साँप पाला जा रहा है सफ़र मुश्किल समझिए बस वहाँ तक जहाँ तक ये उजाला जा रहा है