शुक्र हम ने न कुछ शिकायत की बात है अपनी अपनी ख़सलत की ऐसा हमवार रास्ता कब था क्या ज़रूरत थी उतनी उजलत की कहती रहती है बूढ़ी गुमनामी कितनी छोटी थी उम्र शोहरत की यास उम्मीद ग़म ख़ुशी ख़्वाहिश घर में हर चीज़ है ज़रूरत की हैं मुक़द्दर अज़ाब के मौसम कोई रुत हो नसीब राहत की दिन-ढले होगा जश्न-ए-तन्हाई इल्तिजा है ग़मों से शिरकत की याद आया वो टूट कर 'फ़ारूक़' रात बारिश थी क्या क़यामत की