सुब्ह का धोका हुआ है शाम पर चाँद को देखा अचानक बाम पर जुज़ मिरे सूरज परिंदे आदमी सब निकल जाते हैं अपने काम पर बारयाबी के लिए जाएँ मगर दिल ठिठक जाता है पहले गाम पर पर लगे ख़ुश्बू को तेरे ज़िक्र से मुस्कुराए फूल तेरे नाम पर बे-ज़रूरत घर से निकलें और फिर शय ख़रीदें कोई महँगे दाम पर ख़ामुशी अच्छी है लेकिन इस क़दर कुछ तो बोलें आप इस कोहराम पर ऐ जुनूँ ये जी में आता है कभी वक़्फ़ कर दें ख़ुद को तेरे नाम पर आँख में 'फ़ारूक़' आँसू आ गए क्या फ़साना आ गया अंजाम पर