सीधा चलने में दुश्वारी होती है ख़ाली जेब भी कितनी भारी होती है मुझे बताया बाग़ में बाद-ए-सरसर ने सहरा में भी बाद-ए-बहारी होती है मैं वहशत में फूल मसलने लगता हूँ मुझ पर जब वो ख़ुशबू तारी होती है मुझ को आप अज़ा-ख़ाना कह सकते हैं जितनी मुझ में गिर्या-ओ-ज़ारी होती है सब से पहले वही निशाना बनते हैं जिन हिरनों की आँख शिकारी होती है ये मिस्रा तो मिला है मुझ को विर्से में सब से बड़ी दौलत ख़ुद्दारी होती है दीवाना 'अरमान' मैं उन को मानता हूँ जिन की सनद सहरा से जारी होती है