सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं तपिश-ए-हिज्र में बरसों से गिरफ़्तार हूँ मैं जा किसी और को जा धमकियाँ दे मारने की जब से मैं पैदा हुआ तब से सर-ए-दार हूँ मैं मेरा पैग़ाम भला तेग़ कहाँ रोकेगी हाकिम-ए-वक़त को बतलाओ कलम-कार हूँ मैं मैं ने तो रब को भी पूजा है और उस यार को भी वाइज़ा तू ही बता किस का गुनहगार हूँ मैं मंज़िल-ए-ज़ीस्त कहाँ मंज़िल-ए-मक़्सूद 'वक़ार' इक सुरय्या-ए-मोहब्बत का तलबगार हूँ मैं