उन की चश्म-ए-मस्त में पोशीदा इक मय-ख़ाना था जाम था साग़र था मय थी शीशा था पैमाना था क्या फ़क़त मेरा ही इक छलका हुआ पैमाना था जो भी उन की बज़्म में था होश से बेगाना था इख़्तिलाफ़-ए-शक्ल ने धोका निगाहों को दिया वर्ना जो कुछ शम-ए-सोज़ाँ थी वही परवाना था किस तरह छुपता मिरी टूटी हुई तौबा का राज़ एक मैं तन्हा न था मयख़ाने का मय-ख़ाना था याद इतना रह गया है क़िस्सा-ए-अहद-ए-शबाब इक ख़ुमार-ए-बे-खु़दी था आप से बेगाना था ज़र्द चेहरा बंद लब आँखों में आँसू दिल पे हाथ बे-ज़बानी की ज़बाँ थी और मिरा अफ़्साना था हुस्न की दुनिया के साथ उन की तरफ़ दुनिया-ए-इश्क और यहाँ दिल ही न था और था भी तो दीवाना था जिस की पामाली में मुज़्मर आबियारी थी 'वक़ार' मैं रियाज़-ए-दहर में वो सब्ज़ा-ए-बेगाना था