सिफ़ारिश की ज़रूरत ही न होती नवाज़िश की ज़रूरत ही न होती अगर आता हमें हक़ छीन लेना गुज़ारिश की ज़रूरत ही न होती अगर सूखे कुएँ शबनम से भरते तो बारिश की ज़रूरत ही न होती नहीं आते अगर दुनिया में हम तो रिहाइश की ज़रूरत ही न होती हसीनों का जो होता हुस्न सादा नुमाइश की ज़रूरत ही न होती अगर होता न शौक़-ए-ख़ुद-सनाई सताइश की ज़रूरत ही न होती सियासत-दाँ जो तब्ई मौत मरते तो साज़िश की ज़रूरत ही न होती अगर तुम 'ख़्वाह-मख़ाह' करते क़नाअत तो ख़्वाहिश की ज़रूरत ही न होती