सीख लो ज़िंदगी अमर करना प्यार के बीज को शजर करना काम ये सख़्त है मगर करना अपनी हस्ती को मो'तबर करना रुख़ हवाओं का भाँप कर करना आसमानों पे जब सफ़र करना इश्क़ गूँगा है जब-कि ख़्वाहिश थी उस की आवाज़ पे सफ़र करना एक दिन ग़म हमें सिखा देगा अपने अल्फ़ाज़ में असर करना तीर खाए हैं सब कलेजे पर हम ने सीखा नहीं मफ़र करना नाख़ुदा पार भी उतारेगा बीच में मत अगर-मगर करना सीख जाएँगे हम मोहब्बत में आँसुओं में गुज़र बसर करना रात भी है तो उस की मर्ज़ी से जिस के हाथों में है सहर करना तीर वापस कभी नहीं आता जो भी करना वो सोच कर करना 'प्रेम' रहता है जिस बुलंदी पर उस बुलंदी को तुम भी सर करना