सिलसिला-हा-ए-सियासत हैं सलासिल तोड़ दे बुत तराशे हैं ये सब तू ने ही जाहिल तोड़ दे क़त्ल होना कुछ तिरी तक़दीर का हिस्सा नहीं अपनी क़िस्मत आप लिख शमशीर-ए-क़ातिल तोड़ दे क्यों फिरे दर दर भला कासा गदाई का लिए छोड़ दरयूज़ा-गरी ये रीत साइल तोड़ दे क्यों क़सम खाई है तू ने दिल जलाने की भला जान कफ़्फ़ारे में ले ले अहद-ए-बातिल तोड़ दे हो यक़ीं कामिल तो मंज़िल पास तेरे आएगी रास्ते में जो भी हो दीवार हाइल तोड़ दे बुलबुल-ए-जम्हूर-ए-मग़रिब की कनीज़-ए-ख़ूब-रू पावँ की बेड़ी है ऐ नादाँ ये पायल तोड़ दे कश्ती-ए-बे-नूह के पतवार लहरों से डरें हो रहेगा एक दिन ये हुक्म नाज़िल तोड़ दे हो गया अपने क़फ़स से फिर 'हिदायत' प्यार क्यों है गिरफ़्तार-ए-फ़ुसूँ दिल लौह आमिल तोड़ दे