सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा एक दिन बिस्तर पे कोई जागता रह जाएगा एक ख़्वाहिश दिल को ग़ैर-आबाद करती जाएगी इक परिंदा दूर तक उड़ता हुआ रह जाएगा चार-सू फैली हुई बे-चेहरगी की धुँद में एक दिन बे-अक्स हो कर आइना रह जाएगा हर सदा से बच के वो एहसास-ए-तन्हाई में है अपने ही दीवार-ओ-दर में गूँजता रह जाएगा मुद्दआ हम अपना काग़ज़ पर रक़म कर जाएँगे वक़्त के हाथों में अपना फ़ैस्ला रह जाएगा दो घड़ी के वास्ते आ कर चले जाओगे तुम फिर मिरी तन्हाइयों का सिलसिला रह जाएगा अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात' बस किताबों में लिख्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा