सिलसिला तो कर क़ासिद उस तलक रसाई का दुख सहा नहीं जाता यार की जुदाई का जब ज़रा महक आई शाख़ में लचक आई बाग़बाँ को ध्यान आया बाग़ की सफ़ाई का फ़र्बा था तवाना था तेरा जाना-माना था जिस पे तू हुआ शैदा लौंडा है क़साई का सर पे पैर रखता है मुझ से बैर रखता है मैं ने कब किया दा'वा तुझ से आश्नाई का दोस्तों में ठन जाती थी ये उस की नादानी दुश्मनों के हाथ आता मौक़ा जग-हँसाई का हर कोई परेशाँ है आसमाँ से नालाँ है हर किसी को शिकवा है उस की कज-अदाई का ये अजीब शेवा है दोस्तों का शिकवा है हर किसी को दा'वा है अपनी पारसाई का ऐ तमीज़ बस भी कर इस क़दर न मर उस पर क्यूँ है 'शौक़' चर्राया तुझ को जुब्बा-साई का