सिमटूँ कहाँ से सत्ह पे दरिया रवाँ नहीं उठता कहाँ से मौज में ताब-ओ-तवाँ नहीं थमता नफ़स नफ़स के इशारे क़दम क़दम दौड़ूँ मैं कैसे पाँव में रेग-ए-रवाँ नहीं पुरसान-ए-शब सितारे नहीं हैं सर-ए-फ़लक शोरीदा-सर ख़लाओं भरा आसमाँ नहीं इक रंज-ए-बे-कनार तमव्वुज-तलब कहाँ इक लुत्फ़-ए-बे-बहा सर-ए-दामन गिराँ नहीं क्या कहिए लम्स-हा-ए-ख़राबी का इंतिशार नज़रों में अब ज़मीन नहीं आसमाँ नहीं आलम पे लख़्त लख़्त पड़े रौशनी का बोझ आवारा-पा भी शाकी-ए-ज़ुल्मत-फ़शाँ नहीं फिर दश्त-ए-ला-मकाँ में सदा-ए-जरस कहाँ फिर मुश्त-ए-ख़ाक लाएक़-ए-सद-इम्तिहाँ नहीं