सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा उफ़ ये बद-मस्त मय-कदा मेरा ना रसाई पे नाज़ है जिस को हाए वो शौक़-ए-ना-रसा मेरा दिल-ए-ग़म-दीदा पर ख़ुदा की मार सीना आहों से छिल गया मेरा याद के तुंद-ओ-तेज़ झोंके से आज हर दाग़ जल उठा मेरा याद-ए-माज़ी अज़ाब है यारब छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा मिन्नत-ए-चर्ख़ से बरी हूँ में न हुआ जीते-जी भला मेरा है बड़ा शग़्ल ज़िंदगी 'अख़्तर' पूछते क्या हो मश्ग़ला मेरा