सींचिए पौधों को तो फूल व फल देते हैं वक़्त लगता है मगर कुछ तो बदल देते हैं ऐसे लोगों की तरक़्क़ी नहीं रुकती है कभी वक़्त के प्रश्नों का दो टूक जो हल देते हैं बाग़बाँ उन को बनाने पे लगे हैं कुछ लोग लहलहाती हुई कलियाँ जो मसल देते हैं वक़्त उन का कोई नुक़सान नहीं कर पाता वक़्त पड़ने पे जो ख़ुद वक़्त बदल देते हैं सभ्यता गूँजती है आज भी ऐवानों में हम फ़रिश्ता-सिफ़त इंसान अटल देते हैं उँगलियाँ काटने वालों को ख़बर कर देना हाथ दुश्मन के भी हम लोग कमल देते हैं जो मोहब्बत के पुजारी हैं वो दुनिया भर को तीर तलवार नहीं देते ग़ज़ल देते हैं आज के दौर का इतिहास भी लिखिए साहिब आप तो बस हमें गुज़रा हुआ पल देते हैं 'अंजना' अहल-ए-मोहब्बत को मोहब्बत वाले इक मोहब्बत का निशाँ ताज-महल देते हैं