वक़्त के हाथों मजबूर होते गए तुम किसी से बहुत दूर होते गए धूल क़दमों की चेहरे पे क्या मल लिया और भी हम तो पुर-नूर होते गए इस तरह हम ने उन को नकारा कि फिर वो हमें और मंज़ूर होते गए जाने क्या चीज़ पास उन के आती रही उन की नज़रों से हम दूर होते गए मेरी ग़ज़लों में नाम उन का आता रहा धीरे धीरे वो मशहूर होते रहे मेरी यादें हवा बन के उड़ती रहीं सारे क़िस्से भी काफ़ूर होते गए उन की यादों ने बीमार मुझ को किया और इधर वो भी भरपूर होते गए दूर रक्खा बहकने से मुझ को मगर और नश्शे में ख़ुद चूर होते गए जिन को समझा था मा'मूली हैं ज़ख़्म ये 'अंजना' वो तो नासूर होते गए