सीने में जो है दर्द का दरिया नहीं उतरा लेकिन मिरी उम्मीद का चेहरा नहीं उतरा अनजाने में इक बार कोई भूल हुई थी अब तक मिरे अहबाब का ग़ुस्सा नहीं उतरा सरमाया-ए-जाँ हाथ से जाता रहा लेकिन इस ‘इश्क़-ए-जुनूँ-ख़ेज़ का क़र्ज़ा नहीं उतरा बतलाती है ये नक़्श-ए-कफ़-ए-पा की रवानी मैं दश्त-ए-तमन्ना में अकेला नहीं उतरा कोशिश तो मिरे ज़ौक़-ए-तजस्सुस ने बहुत की लेकिन किसी चेहरे से भी चेहरा नहीं उतरा कचरे से उठाई जो किसी तिफ़्ल ने रोटी फिर हल्क़ से मेरे कोई लुक़्मा नहीं उतरा