राज़ को अपने दिल में रखो दुनिया को मुश्किल में रखो सोचें हों परवाज़ में लेकिन जड़ों को आब-ओ-गिल में रखो हुस्न अगर है बे-पायाँ तो इस को आँख के तिल में रखो उस की याद के उजियारों को अश्कों की झिलमिल में रखो उस महताब-सिफ़त सूरत को सपनों की महफ़िल में रखो माज़ी को छोड़ो माज़ी में हाल को मुस्तक़बिल में रखो अच्छे यार और उन की यादें जीवन के हासिल में रखो