सीने में आग आँख सू-ए-दर लगी रहे काम इंतिज़ार-ए-यार में ऐ दिल यही रहे पहलू के साथ चाक-ए-जिगर भी ज़रूर है ख़ंजर के साथ एक क़रौली लगी रहे दावत मह-ए-सियाम की लाज़िम है ज़ाहिदो दस बीस रोज़ मश्ग़ला-ए-मय-कशी रहे ऐ तिफ़्ल डर है चश्म-ए-बद-ए-पीर-ए-चर्ख़ का हैकल ज़रूर तेरे गले में पड़ी रहे सो लुत्फ़-ए-वस्ल उठाएँगे इक और ले के नींद एहसान है जो मुर्ग़-ए-सहर चुप अभी रहे तीन आसमानों से नहीं छुपता है आफ़्ताब कब इक नक़ाब से तिरी सूरत छिपी रहे आओ न मेरे घर तो न जाओ किसी के घर मेरी ख़ुशी रहे न तुम्हारी ख़ुशी रहे सोने के वक़्त ऐ गुल-ए-तर इत्र क्या ज़रूर तेरी गली में रात को चम्पा-कली रहे हुक्म-ए-शराब दे तो दुआ दूँ कि ऐ फ़क़ीह मस्तों के हाथ से तिरी इज़्ज़त बची रहे ये ग़र्रा-ए-रजब से वफ़ूर-ए-शराब हो ख़ाली के बा'द तक भी तबीअत भरी रहे ख़ाली न कोई शे'र हो बंदिश के नूर से ऐ 'मेहर' आलम-ए-ग़ज़ल-ए-'अनवरी' रहे