सीने में लिए जीने के अरमान हज़ारों मर जाते हैं हर दिन यहाँ इंसान हज़ारों सब हुस्न को मा'सूम समझते हैं जहाँ में और इश्क़ के माथे पे हैं बोहतान हज़ारों हर ज़ख़्म ने बख़्शी है जिला मेरे जुनूँ को क़ातिल तिरी शमशीर के एहसान हज़ारों ला-हासिली आख़िर को है हर चीज़ का हासिल हर नफ़अ' के पहलू में हैं नुक़सान हज़ारों इक ज़ब्त की दीवार सँभाले रही मुझ को हर चंद उठे मुझ में भी तूफ़ान हज़ारों कुछ बात तो उस शोख़ में ऐसी है यक़ीनन फिरते हैं हथेली पे लिए जान हज़ारों ऐ काश मिरे शे'र पे कहता कोई 'रख़्शाँ' क़ुर्बान तिरे शे'र पर दीवान हज़ारों